इस अनजाने दोर में,
शाम या सवेर में,
ज़िन्दगी से भरे हर कोने में,
हर इंसान अपने आप को खुदा समझने लगा है !
हर इंसान का गुरूर चरम पर है,
अब तो उसके पाँव भी ज़मीं से कई किमी ऊपर है,
हर कोई चाहता पैसा अनाप सनाप,
आ जाने पर भी खत्म ना होती उसकी धाप !
सब जगह मची हुई है लूट,
दिन ब दिन बढ़ती पैसे की भूख,
भ्रष्टाचार हुआ इतना आम,
पैसे खिलाये बिना न बनता कोई काम !
रिश्ते भी अब नाम मात्र के है,
ग़नीमत हैं माँ-बाप व बच्चों का रिश्ता अभी भी पवित्र है,
इन दिनों रिश्ते भी पैसो से तोले जाते है,
दिल बड़ा हो, पर पैसा नहीं तो रिश्ते तोड़े जाते है !
सच्चा प्यार तो इन दिनों नाम मात्र का है,
ये तो मेकअप ब्रेकअप का ज़माना है,
यहाँ हर लड़की को फ्री मे रेस्तरों मे खाना है,
माँ-बाप से छुपाकर बॉयफ्रेंड को सब कुछ बताना है !
“दोस्ती” शब्द का तो जैसे मयाना ही बदल गया है,
जब कोई काम हो तभी दोस्त याद आना है,
कई लोग अपने आप को दोस्त कहते है,
ज़रुरत पड़ने पर मुह छुपाते फिरते है !
आजकल तो पढ़ाई के नाम पे भी लुटा जाता है,
फीस अडवांस में लेकर ज्ञान बाटा जाता है,
मास्टर भी हुए बड़े होशियार, स्कूल में करते प्रचार,
घर पर लेते टयुशन के बैच चार-चार !
गरीब की हुई हालत खराब,
पर कौन सोचे उनका जनाब,
रहीसों के पास है बंगले चार-चार,
फिर भी नहीं दे पाते गरीब को पैसे चार !
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अनमोल राजपुरोहित